ज्योतिष शास्त्र
ज्योतिष शास्त्र
ज्योतिष शास्त्र में नवग्रह ग्रहों का स्वभाव और प्रभाव:
१) सूर्य: -
२) चंद्र: -
३) मंगल: -
४) बुध: -
इसके द्वारा गुप्तरोग संग्रहणी, वातरोग, श्वेत कुष्ठ, गूंगापन, बुद्धिभ्रम, विवेक शक्ति, जिल्हा तथा तालु आदि शब्द के उच्चारण से सम्बंधित अवयो का विचार किया जाता है।
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५) गुरु: -
६) शुक्र: -
७) शनि: -
८) राहु:
९) केतु: -
नवग्रह मंत्र (स्त्रोत्र):
तमोरि सर्व्पापध्व्नं प्रणतोस्मि दिवाकरम्।।
चंद्र: – दधिशंखतुषारंभ क्षीरोदार्णव-सम्भवम्।
नमामि शशिनं सोमं शंभोमुर्कुटभूषणम्।।
मंगल: – धरणीगर्भ संभूतं विद्युत्कान्ति समप्रभम्।
कुमारं शक्ति हस्तं च मंगल प्रणमाम्यहम्।।
बुध: – प्रियंगुकलिकाश्यामं रूपेणाप्रतिमं स बुध।
सौम्यं सौम्यगुणोपंत तं बुधं प्रणमाम्यहम्।।
गुरु: – देवनांच ऋषीणांच गुरु कांचनसन्निभम्।
बुध्दिभूतं त्रिलोकेंश तं नामामि बृहस्पतिम्।।
शुक्र: – हिमकुंद मृणालाभं दैत्यानां परमं गुरुम्।
सर्वशास्त्र प्रवक्तारं भार्गवं प्रणमाम्यहम्।।
शनि: – नीलांजन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्।
छाया मार्तड संभूतं तं राहु प्रणमाम्यहम्।।
केतु: – पलाशपुष्पसंकाशं तारकाग्रह मस्तकम्।
इतिव्यास मुखोद्रितं य: पठेत् सुसमाहित: ।।
ज्योतिष के अनुसार कालसर्प
कालसर्प योग:
जाने १२ काल सर्प योग एवं उनके कारण होने वाले प्रभाव:
१) अनंत कालसर्प योग: -
२) कुलिक कालसर्प योग: -
३) वासुकि कालसर्प योग: -
४) शंकपाल कालसर्प योग: -
५) महापादन कालसर्प योग: -
६) पदन कालसर्प योग: -
७) तक्षक कालसर्प योग: -
८) कर्कोटक कालसर्प योग: -
९) शंखचूड़ कालसर्प योग: -
१०) घातक कालसर्प योग: -
११) विषधर कालसर्प योग: -
१२) शेषनाग कालसर्प योग: -
कालसर्प दोष शान्ति के प्रमुख स्थल:
इनका विवरण इस प्रकार है।
सभी १२ ज्योतिर्लिंग स्थल
त्रियंबकेश्वर मंदिर, नासिक (महाराष्ट्र)
इलाहाबाद, (उत्तरप्रदेश)
कालहस्ती शिव मंदिर (आँध्रप्रदेश)
कलिकापीठ, कालीघाट (कोलकाता)
चामुंडा शक्ति पीठ (हिमाचल प्रदेश)
माँ मनसादेवी शक्ति पीठ (चंडीगढ़)
शनिदेव: -
साढ़ेसाती का प्रभाव:
शनि साढ़ेसाती के चरण:
- प्रथम चरण का फल
- साढ़ेसाती का दूसरा चरण का फल
- साढ़ेसाती का तीसरा चरण का फल
शनि की ढैया:
शनि श्लोक:
नीलांजन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्।
छायामार्तड सम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्।।
बीज मंत्रो: – ॐ प्राः प्रिं प्रौं सः शनये नमः
जाप: – 2300
मांगलिक दोष:
मांगलिक योग: -
मंगल दोष के लक्षण: -
- विवाह के समय विघ्न आते हैं।
- जातक का विवाह सम्बन्ध तय नहीं पाता।
- विवाह सम्बन्ध तय होकर छूट जाता हैं।
- अधिक उम्र गुजरने पर भी विवाह नहीं हो पाता।
- विवाह पश्चात् जीवन साथी से प्राय: विवाद के कारण पति-पत्नी के संबंधोमें कटुता की स्थिति बानी रहती हैं।
चतुर्थ भाव में मंगल
सप्तम भाव में मंगल
अष्टम भाव में मंगल
द्वादश भाव में मंगल
लगन भाव में मंगल: -
चतुर्थ भाव में मंगल: -
सप्तम भाव में मंगल: -
अष्टम भाव में मंगल: -
द्वादश भाव में मंगल: -
मंगल श्लोक:
धरणीगर्भ संभूतं विद्युत्कान्ति समप्रभम्।
कुमारं शक्तिहस्तं च मंगल प्रणमाम्यहम्।।
बीज मंत्र:
ॐ क्रां क्रीं क्रौं सभौमाय नमः

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